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अध्यात्म रामायण के अनुसार, एक रात्रि में माता कैकेयी सो रही थीं, तब उनके स्वप्न में विप्र, धेनु, सुर, और संत सभी एक साथ हाथ जोड़कर आए और उनसे कहा, "हे माता कैकेयी, हम सब आपकी शरण में हैं। महाराजा दशरथ की बुद्धि जड़ हो गई है, इसलिए वे राम को राजा का पद दे रहे हैं। यदि प्रभु राजगद्दी पर बैठ गए, तो उनके अवतार लेने का मूल कारण ही नष्ट हो जाएगा। माता, संपूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ आपमें ही यह साहस है कि आप राम से जुड़े अपयश का विष पी सकती हैं। कृपया प्रभु को जंगल भेजकर सुलभ कीजिए, युगों-युगों से कई लोग उद्धार होने की प्रतीक्षा में हैं। त्रिलोकस्वामी का उद्देश्य भूलोक का राजा बनना नहीं है। यदि वनवास न हुआ, तो राम इस लोक के 'प्रभु' न हो पाएंगे, माता।"
देवता घुटनों पर आ गए, और माता कैकेयी की आँखों से आँसू बहने लगे। माता ने कहा, "आने वाले युगों में लोग कहेंगे कि मैंने भरत के लिए राम को छोड़ दिया, लेकिन असल में मैं राम के लिए आज भरत का त्याग कर रही हूँ। मुझे मालूम है इस निर्णय के बाद भरत मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।"
रामचरित मानस में भी कई जगहों पर इसका संकेत मिलता है, जब गुरु वशिष्ठ दुःखी भरत से कहते हैं, "सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ। हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ। हे भरत! सुनो भविष्य बड़ा बलवान् है। हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश, ये सब विधाता के ही हाथ में हैं, बीच में केवल माध्यम आते हैं।"
प्रभु इस लीला को जानते थे, इसलिए चित्रकूट में तीनों माताओं के आने पर प्रभु सबसे पहले माता कैकेयी के पास ही पहुँचकर प्रणाम करते हैं, क्योंकि उनको पैदा करने वाली भले ही कौशल्या जी थीं, लेकिन उनको 'मर्यादा पुरुषोत्तम' बनाने वाली माता कैकेयी ही थीं।#live for bigger purpose :)
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